Upcoming Prayers:

  • 00

    DAYS

  • 00

    HOURS

  • 00

    MINTS

  • 00

    SECS

9am to 5pm Call Now: +91-0788-2621201, 2621133

nagpurau.tirth@gmail.com

Upcoming Prayers:

  • 00

    DAYS

  • 00

    HOURS

  • 00

    MINTS

  • 00

    SECS

9am to 5pm Call Now: +91-0788-2621201, 2621133

nagpurau.tirth@gmail.com

शाश्वत मेरूपर्वत

मेरूपर्वतः
भारत का पहला मेरूपर्वत उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ में निर्मित हुआ है। मुख्य मंदिर के ठीक पिछे शाश्वत मेरू पर्वत गुफा सहित जिनालय बनाया गया है जो इस तीर्थ के समर्पित शिल्पी श्री मणि सा. के दूरदृष्टा होने का प्रतीक है। तीर्थ अंजनशलाका विधान अनुसार अस्थायी मेरूपर्वत बनाया जाना था। श्री मणि जी ने तत्काल मुख्य मंदिर निर्माण से बचे हुए पत्थरों से जो अनुपयोगी था कारीगरों से अपनी ही देखरेख में शाश्वत मेरु पर्वत की रचना करायी। ऊपर देहरी निर्मित कर श्री पाश्र्व प्रभु जी की धातु प्रतिमा तथा गुफा में 24 तीर्थकर परमात्माओं की प्रतिष्ठा हुई है।

अंजनशलाका समय हजारों लोगों ने प्रभु का जन्म महोत्सव मनाया। तब से आज तक पोष बद 10 को जन्म महोत्सव मनाया जाता है।

आज इस मेरु पर्वत का अपना महत्वपूर्ण आकर्षण है। यहां जलाभिषेक देखते ही बनता है। इस मेरु पर्वत जिनालय के निर्माण में मातृश्री वेजबाई नेणसी जीवराज वोरा स्मृति में श्यामभाई नेणसी वोरा परिवार नारायणपुर (कच्छ) हा. मुम्बई ने अग्रणी योगदान दिया। प.पू. प्रतिष्ठाचार्य श्रीमद् राजयशसूरी म.सा. की निश्रा में दिनांक 19 नवम्बर 1995 मागसर (कार्तिक) बद 12 को भव्य प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई।

Today there's its own importance of this Meru Parvat, Jalabhishek is done very beautifully. The construction and grand placement of Meru Parvat Jinalaya was done on 19 November 1995 Maghsagar (kartik) vad 12 under the guidance of pa.pu. Prathithachrya Shrimad Rajyashsurieshwarji ma.sa. was done by Mumbai resident Shri Shyambhai Nensi Vora and Fa of Narayanpur(kauch) of Shri Vejbainensi Jeevraj Vora Smuriti.

The summit of Devotional Mountain is symbolized by MERU-PARVAT. It is built for the JINABHISHEK or complete worship of Lord Parshwanath. The basement houses the idols of all the 24 Teerthankars and is a historical monument of Jain devotional-acme

श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ

तीर्थोद्धार मार्गदर्शक प्रतिष्ठाचार्य