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साधना-आराधना की यात्रा

उपधान तप की द्वितीय आराधना
वीर संवत 2520, वि.सं. 2050 सन् 1993-94 में महाश्रुत सकन्ध उपधान तप का भव्य एवं तीर्थ में दूसरा आयोजन सफल आराधना पूर्वक सम्पन्न हुआ। प.पू. खतरगच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् जिन उदय सागर सूरी म.की आज्ञा से प.पू. उपाध्याय (आचार्य हुए) श्री जिन महोदय सागरजी, पू.मुनि श्री पीयुष सागर जी म.सा. की निश्रा एवं तीर्थ प्रभाविका पू. महाप्रज्ञा साध्वी श्री मनोहर श्री जी म.सा. पू.सा. श्री निपुणा श्री जी की समृद्धता में 287 श्रावक श्राविका प्रथमतः उपधान तप आराधना में सोत्साह सम्मिलित हुए।

अनेक विध तप आराधना के साथ तीर्थोद्धार एवं जीर्णोद्धार निर्माण पूर्णता के पड़ाव से प्रतिष्ठा की तैयारी के अमृत पथ का प्रयाण चल रहा था। रात दिन बीतते 10 वें वर्ष की ओर बढ़ रहा था श्रम साधकों का श्रम। द्वितीय उपधान के दिनों जीर्णोद्धारित उवसग्गहरं जिनालय के निर्माण अन्तर्गत महोत्सव पूर्वक मंडोवर शिला स्थापना कार्य सम्पन्न हुआ।

भक्ति सभर वातावरण में पू.श्री की निश्रा में देश भर के उपधान आराधकों में विशिष्ट जप-तप-आराधना के सााि प्रतिदिन नयनरम्य पार्श्व दादा की प्रतिमा जी के समक्ष मधुर कण्डी मुनि श्री पीयूष सागर म.सा. के मधुरकंठ से प्रवाहित जिनेश्वर परमात्मा की स्तवना के साथ आकंठ डूबे रहे।

श्री उवसग्गहरं पार्श्व तीर्थ

तीर्थोद्धार मार्गदर्शक प्रतिष्ठाचार्य